भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्वप्न / महादेवी वर्मा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:34, 12 अक्टूबर 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इन हीरक से तारों को
कर चूर बनाया प्याला,
पीड़ा का सार मिलाकर
प्राणों का आसव ढाला।

मलयानिल के झोंको से
अपना उपहार लपेटे,
मैं सूने तट पर आयी
बिखरे उद्गार समेटे।

काले रजनी अंचल में
लिपटीं लहरें सोती थीं,
मधु मानस का बरसाती
वारिदमाला रोती थी।

नीरव तम की छाया में
छिप सौरभ की अलकों में,
गायक वह गान तुम्हारा
आ मंड़राया पलकों में!