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हम सत्य से जीते हैं / इधर कई दिनों से / अनिल पाण्डेय

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यदि यही है आज के
मौसम का मिजाज
चलती राह रोकती है
प्रिय मिलन से हमें
प्रतिरोध में उसके
हम ऐलान करते हैं
हवा के रुख को मोड़ देंगे
एक दिन यहीं से
घटनाओं में घटित होने वाले
कहाँ डरते हैं

सुन लो बादल
सुन लो हवा जल अग्नि
सुन लो देश-दुनिया के
रिहायसी सुख-संपन्न
हम सत्य से जीते हैं और
सत्य पर ही मरते हैं
सत्य की खातिर
जीवन का संग्राम रचते हैं ॥