भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम्में सब दुख सहबै/ अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:11, 19 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध प्रसाद विमल |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम्में सब दुख सहबै तोरा सें मिलबै
तोरा से मिलबै, तोरा से मिलबै

हम्में सब दुख सहबै तोरा से मिलबै ।
की कहतै माय-बाबू, की कहतै भैया
मिलिये केॅ रहबै, तोरा सें सैंया
राखयोॅ जेनां पिया, होनै रहबै
हम्में सब दुख सहबै तोरा सें मिलबै ।

विमल प्रेम छै, विमल छै बंधन
विमल-विमल छै, तन आरो मन
साथ जीयै के वादा निभैवै
हम्में सब कुछ सहबै तोरा से मिलबै ।

सौरोॅ-सौरोॅ ई सौनोॅ के मेह
फैली गेलोॅ छै बनी हमरे ई नेह
बूँद बनी तोरा ऐंगना बरसबै
हम्में सब दुख सहबै तोरा सें मिलबै ।