भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर कोई कह रहा है दीवाना मुझे / हस्तीमल 'हस्ती'

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:31, 17 जून 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर कोई कह रहा है दीवाना मुझे
देर से समझेगा ये ज़माना मुझे

सर कटा कर भी सच से न बाज आऊँगा
चाहे जिस वक़्त भी आज़माना मुझे

अपने पथराव से ख़ुद वो घायल हुआ
जिस किसी ने बनाया निशाना मुझे

जिसकी ख़ुशबू बढ़ाती हो आवारगी
वो ही मौसम लगे है सुहाना मुझे

नेमते इस तरह बाँटना, हे ख़ुदा !
सबको दौलत मिले दोस्ताना मुझे