भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर दिन उनसे क्यूं मिलने का मन करता है / सुजीत कुमार 'पप्पू'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:20, 2 अप्रैल 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुजीत कुमार 'पप्पू' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर दिन उनसे क्यूं मिलने का मन करता है,
यूं ही कुछ कहने-सुनने का मन करता है।

जब से नैन मिले तब से दिल बेदार हुआ,
दिन-रात उन्हीं को गुनने का मन करता है।

आते-जाते प्यार हुआ दिल बीमार हुआ,
धीरज के तारे चुनने का मन करता है।

जाने क्या-क्या बात हुई आंखों-आंखों को,
वो ताना-बाना बुनने का मन करता है।

इक गुलशन अपना हो चाहत के मौसम का,
उसमें धीरे से खिलने का मन करता है।