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हर लहर सागर की साहिल तक पहुँच पाती नहीं / शेष धर तिवारी

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हर लहर सागर की साहिल तक पहुँच पाती नहीं
हो भले नाबूद लेकिन लौट कर जाती नहीं
 
मिल गयी मंजिल उसे जिसने सफर पूरा किया
मंजिले मक़सूद चलकर खुद कभी आती नहीं
 
देख कर चेहरा, पलट देते हैं अब वो आइना
मौसमे फुरकत उन्हें सूरत कोई भाती नहीं
 
ज़िंदगी तो कर्म-फल के दायरों में है बंधी
गम, खुशी सब में बराबर बाँट वो पाती नहीं
 
इस जहां के बाद भी है इक जहां, जा कर जहाँ
इल्म होता है कोई शै साथ दे पाती नहीं