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हीर-रांझा, लैला-मजनू किस्से बाजैं गळी-गळी / राजेश दलाल

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हीर-रांझा, लैला-मजनू किस्से बाजैं गळी-गळी
लैला-मजनू को मार रहे पंचातां की तलवार चली
 
प्यार महोब्बत के किस्से अडै़ रातूं गांवै जोगी
गदर, देवदास, वीर-जारा नरे रप्पिये ढोगी
रफी के गाणे गांवै गर्व तै बणकै प्रेम रोगी
प्यार बिना जिन्दगी की बता द्यो किसी कल्पना होगी
प्यार प्रेम के असल राज की दीख ली सै इब तळी
 
गीता-भूमि हरियाणे मैं चौडै़ हुए अन्धेरे
लैला का ना भाई कोये अड़ै मजनू बणै भतेरे
प्यार नै भगवान कहै पर प्यार पनपने ना दे रे
कृष्ण भगवान भी आते ना गोपणीयां संग जीसा ले रे
ये सरव खापी जल्लाद बणे इन जवानां कै फांसी घली
 
तनै बे-अनुमान नुकसान कर लिया लाले जोड़ सरव खापी
अकल चली सर्वनाश करण तेरी वापिस मोड़ सरव खापी
रिवाज तनै भी तोड़े होगें ना तामस तोड़ सरव खापी
गोरां जिसे लुटेरे अड़ै उनका सिर फोड़ सरव खापी
समाज-सुधार की सोच ले नै कुछ तैरी खातिर या बात भली
 
यहां मां-बहणों की इज्जत लुटती यू के इज्जत कै बट्टा ना
लडकी को रहे मार गर्भ मैं जब मान थारा घट्या नां
गलबा गुण्डे भ्रष्टाचारी का गुण्डा राज इबै हट्या नां
राजेश कहै सै इन पै कोए सोचता उल्लू का पठ्यां नां
सीम रे मुंह स्याणे पंचैयती चुप बैठी क्यूं असेम्बली