भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

‘लौट कर आऊंगा’ कोई कह गया / अजय अज्ञात

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:13, 30 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजय अज्ञात |अनुवादक= |संग्रह=जज़्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

‘लौट कर आऊंगा’ कोई कह गया
मैं उसी की राह तकता रह गया

जिस के साये में हमारे दिन कटे
वो शजर अब ठूंठ बन कर रह गया

हम ज़रा से घाव से बेचैन हैं
आसमां चुपचाप क्या-क्या सह गया

यूँ लगा प्राची का सूरज देख कर
धमनियों का रक्त जैसे बह गया

एक पल में मेरे ख़्वाबों का महल
भोर होते भरभरा कर ढह गया

फूल का मकरंद पी कर भी ‘अजय’
इक भ्रमर प्यासे का प्यासा रह गया