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अंकुर / विजेन्द्र
Kavita Kosh से
जो खाली है
उस को भर दो
बालक हो तुम
जल है जीवन
प्यासों की
तिरसा को हर दो।
मिट्टी से फूटा है अंकुर
विभा फैलती
आती देखी
अमर नहीं
पर अमृत कर दो।