भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अंगीठी / रामदरश मिश्र
Kavita Kosh से
वह सोचता है कि
अच्छा हुआ महान नहीं बना
उसकी लपटें चारों ओर नहीं फैलीं
वह तो घर के कोने में
जलता रहा अंगीठी की तरह
और चुपचाप देता रहा-
भूखों को रोटियाँ
और ठिठुरते शरीरों को
उष्मा का धीमा-धीमा प्यार
और यह घर घर बना रहा।
-21.9.2014