भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अंतर्बोध / मंजुश्री गुप्ता
Kavita Kosh से
कोशिश करती हूँ
हर पल को जीने की
हर पल से थोड़ी सी -
खुशियों की चोरी की
मगर होता है
अक्सर ऐसा क्यों ?
कई पल दे जाते हैं
दर्द का
उमड़ता घुमड़ता एहसास
खुद से प्रश्न करती हूँ
उत्तर मिलता है-
कहाँ बनाया है
हर पल को मैंने अपना
वो तो गिरवी है
औरों के पास
नियंत्रण नहीं
मेरा किसी पर
इसलिए मिलते हैं
घात प्रतिघात
ख़ुशी के लिए औरों पर
निर्भर न बन
सूरज की तरह न सही
दीप सी जल
उर्जा और ख़ुशी का
अजस्र स्रोत तो है
स्वयं के ही पास!