भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंवेरण मांय सुख / नीरज दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

थारी अर म्हारी
ओळख रो अरथाव
अबै फगत ओळूं है।

ओळख नै सांपरतै बिसराय’र
ओळूं-गांठड़ी बांधण रा लखण
हाफी-हाफी आ जाया करै है
मिनख नै।

भायला, ऐड़ी ओळख
जिण रो दरद
आपां खातर एक मिठास हुवै
एक मोड़ मुड़्‌यां पछै
फगत अंवेरण मांय ई’ज
हुया करै है- सुख।