भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अगूण गोखै ऊभी बडभागण देखो / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अगूण गोखै ऊभी बडभागण देखो
लोटो ढाळै आ भोर सुहागण देखो

ऐ रसिया, बोलो तो आंनै कुण बरजै
बांरू मास रंग रच्यो फागण देखो

धरती कारखानै री सीटी सुण परो
औ सूरज लाग्यो पाछो भागण देखो

समंदर छोड नित आणो पडै़ पाछो
रात-रात भर देवै आ जागण देखो

घूम-घूम सूरज जग नै बांटै उजास
अठै सूं टुर्‌यो आ ठौड़ सागण देखो