भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अजात सम्बोधन ! / निर्मल शुक्ल
Kavita Kosh से
राम करेंगे फिर बहुरेंगे
सम्मोहन गतिमान के ।
बहुत संकुचित हुईं हवाएँ
अब सागर
फिर मथा जाएगा
लहरों के अनहद निबंध की
देवालय
फिर कथा गाएगा ।
फिर फूटेंगे, अँखुवे जल में
संप्रति जीवन प्राण के ।
अब फिर कोई
सुधा षोडशी
भटकावा लेकर आएगी
संबंधों के कोलाहल को
लम्बी साँसें
दे जाएगी ।
तरल बनेंगी, गरल वीथियाँ
पीकर सत्व निदान के ।
अभियोजन की
ललित कामना
एक सुपरिचित युग लाएगी
फिर नैतिक शैली चिन्तन की
सृजनशीलता
दोहराएगी ।
फिर अजात होंगे सम्बोधन
टूटन ओर थकान के ।