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अज्ञान का वजन / मुकेश निर्विकार
Kavita Kosh से
यह बात दुरुस्त है
की चिंता चींटी को भी करनी चाहिए
लेकिन धरती भर की नहीं!
क्या नन्ही-सी इन चीतियों को भी पता है
कि बेहद विशाल है यह धरा
नहीं दब सकेगी तनिक भी
और न ही रुकेगी कभी थक-हारकर
चींटियों के बोझ से?
निश्चित ही नहीं पता उन्हें यह सब
तभी तो बेहद अकड़कर चल पड़ती हैं चीटियाँ
धरती को पद-दलित करने की
हसरतों का बोझ लादे।
वाकई,
बेहद भारी होता है
अज्ञान का वजन।