भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अड़वै री हांडी / ओम पुरोहित कागद
Kavita Kosh से
अड़वै री हांडी
होई बांडी
घर बणी
चिड़कल्यां रो।
खेत धणी रा
पग सुण
चिड़कल्यां भरी उडारी
अड़वो फंफेड़ीज्यो
सूत्यो गंडक उठ्यो
अड़वै रै दीवी
पांच-सात फेरी
अचाणक उठाई
आपरी एक टांग
पछै बा ई बात
जकी करै
गंडका अकसर
दिन-रात।