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अन्दर ही अन्दर / संगीता गुप्ता
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अन्दर ही अन्दर
यह क्या सुलग रहा है
अजीब - सा ?
बाहर निकलनें को
अकुलायी
अनजान - सी छटपटाहट
गले में
अटकी - अटकी - सी
क्या नाम दूं
इस अनाम को ?
परछाई - सी साथ लगी रहती
इस अनचाही सच्चाई से
कभी मुक्त हो सकूंगी क्या ?