भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अन्धारी नगरी में आंधा बसै है लोग / लक्ष्मीनारायण रंगा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अन्धारी नगर में आंधो बसै है लोग
खुली आंख्यां लियां अठै सोवै है लोग

हाथा में मसालां जत्था रा जत्था
दिन रा उजाळा गुम जावै है लोग

आवणिया दिनां रा ले मीठा सुपनां
बाजीगरां सूं सदा ठगीजै है लोग

जड़ांमूल खाणै री, मनसा लियां मनां
मूंढ़ै पे अपणायत दिखावै है लोग

ऊपर सूं रंगमै‘ल सी चमक-दमक लियां
मांय मांय तरेड़ां, सी पावै है लोग

मकड़ी रै तन्तर में जाळा ई जाळा
तन-मन सूं फंस्या, तड़फड़ाव है लोग