अपना कौन कौन है दूजा / रंजना वर्मा
अपना कौन कौन है दूजा, किस किस को समझायेगा
खाली हाथ धरा पर आया, हाथ पसारे जायेगा
लोभ न करना धन दौलत का, यह है क्षण भंगुर माया
सब दुनियाँ में रह जाना है, किया कर्म सँग जायेगा
तोड़ समय की सीमाओं को, बाँधे रिश्तों की लड़ियाँ
कहे प्रेम की जो परिभाषा, रिश्ता वही निभायेगा
सज्जन के पद - चिह्न हमेशा, लेतीं ढूंढ़ हवायें हैं
चलती रहें आँधियाँ फिर भी, पन्थ न मिटने पायेगा
द्वार राम के जो भी आया, कब निराश हो कर लौटा
जिस ने यहाँ झुकाया मस्तक, कहीं न और झुकायेगा
जब भी कोई पड़ी मुसीबत, बढ़ कर जिस ने साथ दिया
सच्चा मीत उसे ही समझो, काम हमेशा आयेगा
जिन के बलिदानों के किस्से, गूँजें नित्य हवाओं में
कौन जगत में है ऐसा जो उन के गीत न गायेगा