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अपना घर छोड़ चले / शिवकुटी लाल वर्मा
Kavita Kosh से
आबाद रहो बस्ती वालो ! हम तो अपना घर छोड़ चले
आबरू भली जो साथ रही हम तो दर-आँगन छोड़ चले
अब किससे कैसी होड़ यहाँ हम सारी दुनिया छोड़ चले
हर हँसी ठहाका दिलदारी दामन में तुम्हारे छोड़ चले