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अपना ही आकाश बुनूं मैं / हरीश भादानी
Kavita Kosh से
सूरज सुर्ख बताने वालो
सूरजमुखी दिखाने वालो
अंधियारे बीजा करते हैं
गीली माटी में पीड़ाएं
पोर-पोर
फटती देखूं मैं
केवल इतना सा उजियारा
रहने दो मेरी आंखों में
सूरज सुर्ख बताने वालो
सूरजमुखी दिखाने वालो
अर्थ नहीं होता है कोई
अथ से ही टूटी भाशा का
तार-तार
कर सकूं मौन को
केवल इतना शोर सुबह का
भरने दो मुझको सांसों में
स्वर की हदें बांधने वालो
पहरेदार बिठाने वालो
सूरज सुर्ख.....
गलियारों से चौराहों तक
सफ़र नहीं होता है कोई
अपना ही
आकाश बुनूं मैं
केवल इतनी सी तलाश ही
भरने दो मुझको पांखों में
मेरी दिशा बांधने वालो
दूरी मुझे बताने वालो
सूरज सुर्ख बताने वालो
सूरजमुखी दिखाने वालो