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अपनी वहशत का कुछ अंदाज़ा लगाया जाए / 'महताब' हैदर नक़वी

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अपनी वहशत का कुछ अंदाज़ा लगाया जाए
फिर किसी शहर को वीराना बनाया जाए
 
कब तलक सूरत-ए-तस्वीर रहेंगे हम लोग
उसकी दीवार का सर से कभी साया जाए
 
पहले उस शोख़ को गुमराह किया करते हैं
फिर यह कहते हैं उसे राह पे लाया जाए
 
अक़्ल कहती है कि शानों पे यह सर भारी है
दिल की ज़िद है कि यही बोझ उठाया जाए
 
पूछते रहिये यूँ ही उसके जुनूँ को सबसे
जो कभी दस्त-ओ-जबल1 में न पाया जाए

1-जंगल और पर्वत