भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपलक मुझे निहारा करते दो नैना /वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
अपलक मुझे निहारा करते दो नैना
यूँ ही दिवस गुज़ारा करते दो नैना

पल भर कभी निहारे मुझको कोई और
ये न कभी गवारा करते दो नैना

मेरा हृदय सशंकित, पीड़ित हो उठता
जब भी कभी किनारा करते दो नैना

कल थे कहाँ? कहो कैसे हो? ठहरो भी
क्या क्या नहीं इशारा करते दो नैना

देते नित्य विचारों का उपहार मुझे
मेरी ग़ज़ल संवारा करते दो नैना