भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अप्प दीपो भव / अंगुलिमाल 1 / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
बहुत देर
रहा मौन
एकाकी अंगुलिमाल
उसने था सिरजा दुख
निर्मम हत्याओं का
'राच्छस' था हुआ क्रूर
लोक की कथाओं का
उसे नहीं
व्यापा था
इच्छा का मकड़जाल
यही सत्य था उसका -
कटी हुई उँगलियाँ
डरे हुए नगर-गाँव
वन-पर्वत-घाटियाँ
आसपास
उसके थे
लहू-भरे सिर्फ ताल
और तभी आये थे बुद्ध
किसी भोर-सपने-से
और सब अपरिचित थे
वही लगे अपने-से
उन्हें देख
जागे थे
उसके मन में सवाल