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अब जलती है अब जलती है / रोशन लाल 'रौशन'

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अब जलती है अब जलती है
गीली लकड़ी कब जलती है

कर्म नदी के शीतल जल में
तृष्ण बे-मतलब जलती है

याद रहे तो भूल न होगी
शम्आ सारी शब जलती है

भोर लगे है घोर अमावस
कौन चिता यारब जलती है

अँधियारे ये जान चुके हैं
दीप शिखा बेढब जलती है

हिर्सो-हवस की आग है ‘रौशन’
घर-बाहर जब-तब जलती है