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अब जो हरष भयौ रावल में / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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अब जो हरष भयौ रावल में या की तुलना कितहूँ नाहिं।
तुलना कितहूँ नाहिं, या की समता कितहूँ नाहिं॥
बहुत पुरानौ घर कौ ढाढ़ी, पके केस यह लंबी दाढ़ी।
कुँवारि-जनम सुनि मुदिता बाढ़ी, धायौ लै परिवार॥
संग डोकरी आई चलिकै हरख भरी हिय नाचै-मुलकै।
बूढ़ी देह जवानी छलकै, छायौ मोद अपार॥
छोरा-छोरी, बहू-बहुरिया, गायँ असीसैं मधुर सुरैया।
लाख-लाख जुग जिओ कुँवारिया, मिलै स्याम भरतार॥
आज मिलैगे साल-दुसाला, हीरा-पन्ना, मुक्त-माला।
सोने के जेवर झलकाला, हाथ-पाँव पुरवार॥
भई आज सब की मनभाई, छोटे-मोटे लोग-लुगाई।
बगदैंगे तन खूब सजाई, लै रतनन के भार॥
जय-जय नृप बृषभानू दानी, जय उदार-मति कीरति रानी।
जय-जय अखिल बिस्व सुख-दानी! मिलै मान सरकार॥