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अमरस / जयप्रकाश मानस
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बसंती काकी की माँ
आती है जब कभी गाँव
सभी बहुओं को
हो जाती है ख़बर
सुधियों के आधे फटे आधे साबुत पन्ने पर
उभर आता है
माँ का असीम और अपरिमापित दुलार
बीते दिनों
कई दिनों की घनघोर बारिश के बाद
आँगन तक उतर आई
सूर्य-किरणों की मानिंद
वे चाहती है
सुधियाँ न सही
बसंती काकी की माँ के आने की ख़बर
हमेशा-हमेशा के लिए
बगर कर रह जाए
जैसे जंगली फूलों की गंधवाली हवा
जैसे भरी दोपहरी सुनसान रास्ते में किसी चिड़िया की बोल
जानते हैं आप
यह ख़बर
कोई नहीं
बसंती काकी की माँ का लाया हुआ अमरस ही बाँटता है