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अवबोध / श्रीकान्त जोशी
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जीवन एक और अखण्ड उपस्थिति है
पर मृत्यु-खंडित है आदमी।
उसने जब-जब चुनौती दी मृत्यु को
वह आदमीयत के पक्ष में खड़ा हो गया।
आदमी मरता रहता है
आदमीयत चलती रहती है
समय को शताब्दियों तक महकाती
काल-देह पर चलाती
अलक्ष्य दराँती।