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असर-ए-याद / रमेश ऋतंभर
Kavita Kosh से
जब कोई कहीं दूर गहरी नींद में डूबा होता है
तब ठीक उसी वक़्त कोई उसे याद कर रहा होता है
जब कोई कहीं दूर भोजन के कौर निगल रहा होता है
तब ठीक उसी वक़्त कोई उसे याद कर रहा होता है
जब कोई कहीं दूर आइने में अपने को निहार रहा होता है
तब ठीक उसी वक़्त कोई उसे याद कर रहा होता है
किसी के अचानक सपने में आने, गले में कौर के अटकने
और शीशे के चटकने का कोई अर्थ होता है
किसी की याद यूँ ही बेअसर नहीं होती।