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अेक सौ उगणीस / प्रमोद कुमार शर्मा

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ब्रह्मांड है साम्हीं
-थामी
थोड़ी आपरै खयालां री लपट
च्यारूं कूंटां लपट-झपट

बियां भी बापड़ो बळ्यां बगै है
दिनूंदिन गळ्यां बगै है
भीतर सूं होय'र सतबायरो
कोई तो दिरावो लाई नैं सायरो
बीं री व्याकरण अलोप हुयगी है
गो-संस्कृति पादरी अर पोप हुयगी है

संक्रमण ठाडो है
गा लारै पाडो है
बळद है जाबक बूढा
अर चढाई पर गाडो है
जिन्नगी आ जिन्नगी
-आरोप हुयगी है।