भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आंगणो / इरशाद अज़ीज़
Kavita Kosh से
मांड कदैई तो
म्हारै अठै ई
थारा कूं कूं पगल्या
जोवूं थारी बाट
आव, अेकर तो आव!
सूना पड़यो है
म्हारै हिवड़ै रो आंगणो।