भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आख़िरी जाम / निकानोर पार्रा / नरेन्द्र जैन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम चाहें या न चाहें
हमारे पास सिर्फ़ तीन विकल्‍प हैं
कल आज और कल

और तीन भी नहीं
क्‍योंकि जैसा किसी दार्शनिक ने कहा है
कल, कल है
और, सिर्फ़ हमारी स्‍मृतियों से सम्बद्ध है

तोड़े हुए गुलाब से
और पँखुड़ियाँ नहीं निकाली जा सकतीं

खेल के लिए ताश के दो पत्ते हैं
वर्तमान और भविष्‍य
और दो भी नहीं
क्‍योंकि यह जगज़ाहिर तथ्‍य है
कि वर्तमान का कोई वजूद नहीं
सिवा इसके कि वह बोलता है
और जवानी की मानिन्द
सोख लिया जाता है

अन्त में
हम बचे रहते हैं भविष्‍य के सँग

मैं
उठाता हूँ अपना जाम
न आने वाले दिन के लिए
क्‍योंकि यही कुछ है बचा
जो किया जा सकता है

अँग्रेज़ी से अनुवाद : नरेन्द्र जैन