आख़िरी मुलाक़ात / अमित गोस्वामी
ऐसे मुँह फेर के मत जा मेरी हमराह, ठहर
और कुछ देर, मैं जी भर के तुझे देख तो लूँ
आज इस शाम ने धुँधला दी हैं मेरी ऑंखें
इनको अश्कों से वज़ू कर के तुझे देख तो लूँ
आज होठों पे तेरे शिकवे थे नग़्मों की जगह
आज बातों के तेरे और ही कुछ मौज़ू थे
एक लम्हे के लिए, एक घड़ी को ही सही
आज ऑंखों में तेरी, मेरे लिए ऑंसू थे
मुझको अपने किसी ग़म से कोई तकलीफ़ नहीं
तेरे अश्कों से मेरा दर्द मचल उट्ठा है
यूँ तो मुद्दत से मेरा ज़हन परेशान ही था
आज इक और नई आग में जल उट्ठा है
आज ऑंखें मेरी बेताब छलक जाने को
आज मत रोक मिरे अश्कों को, बह जाने दे
यूँ तो चेहरे का हर इक नक़्श मेरे ज़ेहन में है
आज ये अक़्स तेरा, ऑंखों में रह जाने दे
तेरे इस अक्स से मैं नज़्म नई ढालूँगा
नज़्म वो जिसमें तसलसुल हो तेरी ज़ुलफ़ों सा
नज़्म, उनवान हो जिसका तेरी साहिर ऑंखें
नज़्म वो, जिसमें कि जादू हो तेरी बातों सा
या कि इस अक्स की तसवीर बना लेता हूँ
ऐसी तसवीर कि अफ़सूँ हो मुजस्स्म कोई
ऐसी तसवीर कि जिसमें हो तेरी ऑंखों सा रंग
या हो जिसमें तेरे होठों सा तबस्सुम कोई
ऐसे ख़ामोश न रह, बोल, तेरी बातों से
नज़्म के वास्ते आहंग चुरा लेने दे
यूँ न मुँह फेर, इधर देख तेरी ऑंखों से
मुझको तसवीर के कुछ रंग चुरा लेने दे
बुझती ऑखों में मेरी आस भी है, ऑसू भी
देख हमराह मेरी, मुड़ के मुझे देख तो ले
मैं तुझे देखता, बस देखता रह जाऊँगा
आख़िरी बार सही, मुड़ के मुझे देख तो ले