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आज की सदी / राम नाथ बेख़बर
Kavita Kosh से
पता नहीं
क्या हो गया है
आज की सदी को
कि अब किसी के कान
सुन ही नहीं पाते
दूसरों की चीख
कि अब किसी की आँखें
देख ही नहीं पातीं
किसी भी सत्य को
कि अब किसी की जीभ से
निकलते ही नहीं
प्यार के दो मीठे बोल
कि अब किसी का हृदय
द्रवित ही नहीं होता
दूसरों की आह पर
क्या यह सदी
गूँगे
बहरे
अंधे
और हृदयहीन लोगों से
भर चुकी है पूरी तरह।