भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आज जागी क्यों मर्मर-ध्वनि ! / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
Kavita Kosh से
|
आजि मर्मर-ध्वनि केन जागिल रे !
आज जागी क्यों मर्मर-ध्वनि !
पल्लव पल्लव में मेरे हिल्लोल,
हुआ घर-घर अरे कंपन ।।
कौन आया ये द्वारे भिखारी,
माँग उसने लिए मन-धन ।।
जाने उसको मेरा यह हृदय,
उसके गानों से फूटें कुसुम ।
आज अंतर में बजती मेरे,
उस पथिक की-सी बजती है ध्वनि ।।
नींद टूटी, चकित चितवन ।
मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल
('गीत पंचशती' में 'पूजा' के अन्तर्गत 133 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)