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आज फिर मुझको खिड़की से/ विनय प्रजापति 'नज़र'

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लेखन वर्ष: २००३

आज फिर मुझको खिड़की से
दिख रहा है चाँद आधा-आधा

जिस तरह से मैं जी रहा हूँ
वो भी कहीं जी रहा है आधा-आधा