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आज भळै / ओम पुरोहित कागद
Kavita Kosh से
सगळा हा
उण घड़ी
जिण घड़ी
औसरी ही
आभै सूं अकूंत माटी
सगळा जड़ होय
मिळग्या बणतै थेड़ में
आज भळै
आपरा ई वंसजां नै
खोद काढ्या है
कस्सी
खुरपी
बठ्ठल-तगारी!