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आदिम आकांक्षा / आभा पूर्वे
Kavita Kosh से
जब कभी देखती हूँ
रेत पर चिकने
बालू का उभार
लगता है जैसे
किसी मुग्धा के
उन्नत उरोज।
चाहती हँू
सर रखकर
उम्र भर इसे
निहारती रहूँ ।