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आपको जो चाहिए ले लीजिए / कमलकांत सक्सेना
Kavita Kosh से
आपको जो चाहिए ले लीजिए
ले रहे अधिकार शब्दों पर कमल।
जो पवन के आसरे थे उड़ गये
हम रहे आधार अपनों पर कमल।
आपका इतिहास ढालों ने लिखा
और है तलवार युद्धों पर कमल।
आपकी सूरत सलोनी है मगर
दहकते अंधियार शीशों पर कमल।
कुर्सियाँ तक बन गई हैं देवता
रह गई सरकार खरचों पर कमल।
अब कला का मोल होता है कहाँ
जी रहे फनकार रोजों पर कमल।
जो नहीं केवल पुजारी ही रहा
पूज्य है वह प्यार अधरों पर कमल।
यह हमारी सभ्यता है देखिये
खुद बने उपहार लपटों पर कमल।