भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आल्हा ऊदल / भाग 24 / भोजपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नौ सौ तोप चले सरकारी मँगनी जोते तीन हजार
बरह फैर के तोप मँगाइन गोला से देल भराय
आठ फैर के तोप मँगाइन छूरी से देल भराय
किरिया पड़ि गैल रजवाड़न में बाबू जीअल के धिरकार
उन्ह के काट करों खरिहान
चलल जे पलटन इंदरमन के सिब मंदिर पर पहुँचल जाय
तोप सलामी दगवावल मारु डंका देल बजवाय
खबर पहुँचल बा रुदल कन भैया आल्हा सुनीं मोर बात
करव तैयार पलटन के सिब मंदिर पर चलीं बनाय
निकलल पलटन रुदल के सिब मंदिर पर पहुँचल बाय
बोलल राजा इंदरमन बाबू रुदल सुनीं मोर बात
डेरा फेर दव एजनी से तोहर महा काल कट जाय
तब ललकारे रुदल बोलल रजा इंदरमन के बलि जाओं
कर दव बिअहवा सोनवा के काहे बढ़ैबव राड़
पड़ल लड़ाइ है पलटन में झर चले लागल तरवार
ऐदल ऊपर पैदल गिर गैल असवार ऊपर असवार
भुँइयाँ पैदल के नव मारे नाहिं घोड़ा असवार
जेत्ती महावत हाथी पर सभ के सिर देल दुखराय
छवे महीना लड़ते बीतल अब ना हठे इंदरमन बीर
चलल ले राजा बघ रुदल सोनवा कन गैल बनाय
मुदई बहिनी मोर पहुँच वाय