भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आ‌ए मुनि भानु-भौन नारद / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आ‌ए मुनि भानु-भौन नारद बरसाने।
 गावत हरिनाम मधुर पावन रस-साने॥
 मिले वृषभान आय बोले मृदु बानी।
 हरिपुर तैं आ‌ए हम सुनि कै, सुखदानी॥

 प्रकट भर्ईं कीरति-कूख कुंवरि श्रीराधा।
 पूरन सब आस, हरन त्रास, सकल बाधा॥
 दरसन करवा‌औ हमैं कुंवरि के अबहीं।
 दीने पठाय भानु भीतर महल तबहीं॥

 देखत ही भ‌ए मगन, तन-मन सब भूले।
 महा आनंद-रस छायौ, हि‌ए फूले॥
 भाँति-भाँति करत स्तवन, फेर कर दीनी।
 चरन-रेनु कुंवरि की सिर चढ़ाय लीनी॥

 बाहिर आय बोले-’वृषभान बड़भागी !
 तुम पै दुरलभ अपार कुँवारि-कृपा जागी॥
 प्रकट भर्ईं आय घर तुहरे जो स्वामिनि।
 सच्चिदानंदम‌ई अह्लादिनि हरि-भामिनि॥

 मृदुल सुर बजाय बीन, मधुर-मधुर गावन।
 लगे रस-भरे दृगन आँसू ढरकावन॥
 सरस रस प्रमत्त फेर नृत्य करन लागे।
 बोले-'मैं धन्य आज, भाग्य भय जागे’॥