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इक ज़ात में ढलता हुआ सा अपना वजूद / रमेश तन्हा

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इक ज़ात में ढलता हुआ सा अपना वजूद
क्या जान पे है सिर्फ रिदा अपना वजूद
देखें जो जमां मकां के पैराए में
है रुत की तरह एक फ़ज़ा अपना वजूद।