Last modified on 30 जनवरी 2012, at 09:52

इश्क-ए-हक़ीक़ी / रेशमा हिंगोरानी

देर तक...
दूर तक...
रहती है महक...
जब तू चला जाता है,
कहाँ घटता है असर,
जब तू चला जाता है…

वो बेमिसाल सा लफ़्ज़ों का जाल,
खिजाँ को जो बना दे
जाँफिज़ा!

तमाम वो कलाम,
तेरे फुर्क़त के काम...
जो भेजे मेरे नाम,
वो सारे ही पयाम,

बने रहते हैं बदस्तूर,
सब अपनी ही जगह!

उम्र कटती रहे,
घटती है कब कशिश तेरी?
वक़्त जाता रहे,
बदली है कब रविश तेरी?

कब उतरता है नशा,
जब तू चला जाता है…
कहाँ होती है बसर,
कहाँ घटता है असर,
जब तू चला जाता है…

04.06.93