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इस उदासी के लिए नाम बताओ कोई / सुरेश सलिल

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इस उदासी के लिए नाम बताओ कोई
क्यूँ घिरी रहती सुबहो शाम, बताओ कोई

रात भर कोह से तेशे से गुफ़़्तगू, फिर भी
क्यूँ फ़रामोशिए गुलफाम, बताओ कोई

नीन्द क्यूँ दूर शब ब खैर से छिटकी रहती
कौन डस जाता सरे शाम, बताओ कोई

इक नई दुनिया की तामीर की वो जद्दोजहद
फिर भी क्यूँ ज़िन्दगी नाकाम, बताओ कोई

सरफ़रोशी से इंक़लाब का आग़ाज़ हुआ
करता उस आग़ाज़ का अंजाम, बताओ कोई