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इसी कदम्ब तले / गुलाब खंडेलवाल
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इसी कदम्ब तले
कभी राधिका और श्याम दिखते थे गले-गले
यमुना वही, वही मधुवन है
वही चाँद है, वही गगन है
किन्तु गूँजता झिल्ली स्वप्न है
वंशी के बदले
रास नहीं रचते अब तट पर
धूम न मचती है पनघट पर
जुड़ते नहीं द्वार के वट पर पंछी साँझ ढले
यों तो फिर भी मेघ घिरेंगे
नयनों में घनश्याम तिरेंगे
किन्तु भूल कर भी न फिरेंगे
अब वे दिन पहले
इसी कदम्ब तले
कभी राधिका और श्याम दिखते थे गले-गले