भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उठहु उठहु प्रभु त्रिभुअन-राई / भारतेंदु हरिश्चंद्र
Kavita Kosh से
युद्ध के समय योधागण के गाने को
उठहु उठहु प्रभु त्रिभुअन-राई ।
तिनके शत्रु देहु छितराई ।
रन मँह तिनहिं गिरावहु मारी ।
स्वामिनि स्वत्व हेतु जे बीरा ।
लड़हिं हरहु तिनकी सब पीरा ।
यह बिनबत हम तुव पद तीरा ।
हे प्रभु जग-स्वामी सुखकारी ।