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उड़ंची / सरोज कुमार
Kavita Kosh से
तुम्हें कोई उड़ंची दे सकता है,
आकाश नहीं!
अपनी पतंग तो
तुम्हें ही उड़ाना पड़ेगी!
उसकी काँप,
उसके ठुड्डे
उसका मंजा,
उसकी ठुमकी
उसका हुचका!
सबका अपना गणित है!
उड़ंची वाली
शुरुआती उड़ान
पतंगबाजी नहीं है!
पतंग के दाँव, उसके पेंच
उसकी ढील, उसकी खेंच
सबका अपना व्याकरण है!
उड़ंची, ऊंचाइयों का
आश्वासन नहीं है!