भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उपाय / वेणु गोपाल
Kavita Kosh से
अंधेरे के खिलाफ़ होता हूँ मैं जब
मेरे पास एक ही उपाय होता है
तब
अचूक
और
वह
तुम हो।
तुम्हें मैं रोशनी की तरह इस्तेमाल कर लेता हूँ।
और
जब कभी
रोशनी की दुनिया
खिलाफ़ हो जाती है
मेरे
तो
मैं
तुरन्त
तुम्हारे जिस्म से
अपने जिस्म को
एकमेक करते हुए
एक
निजी अंधकार
रच लेता हूँ
आसपास ।
रचनाकाल : 23 मई 1975