भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उल्फत -ए-रुसवाई / धीरेन्द्र अस्थाना
Kavita Kosh से
उल्फत -ए-रुसवाई में जो मिली जुदाई ,
तन्हाई में जीने की आदत सी हो गयी ...............!
गुजरे हैं जिन्दगी के उस मुकाम से ,
हर गम पीने की आदत सी हो गयी...!
अब तो बस दिए हुए उन जख्मों को ,
यादों में सीने की आदत सी हो गयी...!
खुद मेरी मंजिल मालूम नहीं मुझे ,
भीड़ में खो जाने की आदत सी हो गयी...!
ये ज़िंदगी तो अब मुकद्दर बन गयी ,
सजा -ए - मौत पाने की आदत सी हो गयी...!
सैयाद तेरा दाम कितना ही नाजुक हो ,
इस में फडफड़ाने की आदत सी हो गयी...!
उल्फत -ए-रुसवाई में जो मिली जुदाई ,
तन्हाई में जीने की आदत सी हो गयी...!