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उस कू मैं हुए हम वो लब-ए-बाम न आया / मीर 'तस्कीन' देहलवी
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उस कू मैं हुए हम वो लब-ए-बाम न आया
ऐ जज़्बा-ए-दिल तू भी किसी काम न आया
था मेरी तरह ग़ैर को भी दावा-ए-उल्फ़त
नासेह तू उसे देने का इल्ज़्ााम न आया
बे-बाल-ओ-परी खोती है तौक़ीर-ए-असीरी
सय्याद यहाँ ले के कभी दाम न आया
इस नाज़ के सदक़े हूँ तेरे मैं के अदू से
सौ बार सुना है पे मेरा नाम न आया
क्या जानिए किस तरह दिया तू ने जवाब आह
क़ासिद की ज़बाँ पर तेरा पैग़ाम न आया
‘तस्कीन’ करूँ क्या दिल-ए-मुज़्तर का इलाज अब
कमबख़्त को मर कर भी तो आराम न आया